प्राचीन भारतीय इतिहास के अंतर्गत चौथी शताब्दी एवं उससे आगे राजभाषा के रूप में संस्कृत के होने के प्रमाण मिलते हैं, वहीं ईसा पूर्व से तीसरी शताब्दी में सामान्य भाषा के रूप में प्राकृत भाषा का प्रयोग हुआ है। ईसा पूर्व से 300 से सन् 600 तक संगम साहित्य में इस समय के भारत के इतिहास का वर्णन मिलता है।वही ईसा पूर्व में 1500-500 के समय के भारतीय इतिहास का वर्णन वैदिक पाठ या ग्रंथ में उपलब्ध द्रविड़ एवं संस्कृतेतर पदों के रूप में मिलता है।
खोज करता काल्पनिक आदमी |
प्राचीन भारतीय इतिहास के अध्ययन के दौरान हमें भारतीय इतिहास के अनेक पहलुओं की जानकारी मिलती है। भारत के इस इतिहास के अध्ययन से हम जान पाते हैं कि आखिर भारत में प्राचीनतम संस्कृतियों का विकास कैसे, कब व कहाँ हुआ। इस काल के लोगों ने कब और कैसे अपना विकास किया। भारत का प्राचीन इतिहास हमें यह बताता है कि इस काल के लोगों ने कैसे कृषि पद्धति की शुरुआत की और किस प्रकार अपने जीवन यापन को सुरक्षित और सुव्यवस्थित करने के प्रयास किए। इसके अलावा प्राचीन भारतीय इतिहास हमें यह बताता है कि इस समय के लोगों ने कैसे अपने जीवन यापन के साधनों का निर्माण किया और कैसे उन्होंने अपने भोजन, आश्रय, यातायात के विभिन्न साधनों के निर्माण की प्रक्रिया को प्रारंभ किया, साथ ही उन्होंने कैसे खेती, बुनाई, कताई जैसे कार्यों को प्रारंभ किया।
प्राचीन पत्थर शिलालेख |
प्राचीन भारतीय इतिहास का महत्व
"प्राचीन भारत के इतिहास को पढ़ने एवं समझने के दौरान हमारे मन की इस जिज्ञासा का भी समाधान दूर होता हुआ दिखाई देता है कि आखिर कैसे प्राचीन भारत के लोगों ने वनों को काटकर गांवों का निर्माण किया और फिर कई गांवों को मिलाकर शहरों को बसाया और अंततः कैसे शहरों को मिलाकर एक बड़ा साम्राज्य खड़ा किया।"
प्राचीन भारतीय इतिहास हमें भारत में निवास करने वाली विभिन्न प्रकार की जनजातीय समूहों और प्रजातियों की सांस्कृतिक जीवन को गहराई से जानने का एक सुअवसर देता है।
आर्य लोगों को उत्तर भारत में वैदिक काल एवं पौराणिक संस्कृति से जुड़ा हुआ माना जाता है तथा आर्यो से पहले दक्षिण भारत की द्रविड़ एवं तमिल संस्कृति को भारतीय इतिहास से जोड़कर देखा जाता है। यदि हम इतिहास की गहराई में जाने का प्रयास करें तो हम पाते हैं कि 1500 से 500 ईसा पूर्व के वैदिक ग्रंथों में हमें मुंडा, द्रविड़ और कई संस्कृत के शब्द मिलते हैं संभवतः ये शब्द प्रायद्वीपीय भारत अथवा गैर वैदिक भारत से संबंधित विचारों को हमारे समक्ष प्रस्तुत करते हैं। संगम साहित्य से जुड़े प्राचीनतम ग्रंथों में हमें पाली भाषा और संस्कृत के अनेक शब्द मिलते हैं। यह भाषा गंगा के मैदानों में निवासरत् लोगों और यहां के समुदायों के विचारों को दर्शाया करती थी। किंतु आर्य लोगों से पहले भी पूर्वी क्षेत्र में रहने वाले लोगों और निवासियों ने जो कि यहां की जनजातियां थी इस दिशा में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिए हैं।
धार्मिक पृष्ठभूमि
जब भी हम भारतीय इतिहास के महत्व की बात करते हैं तो भला यहां मौजूद धर्म और उसकी पृष्ठभूमि कैसे अछूती रह सकती है।प्राचीन समय से ही भारत कई धर्मों व उनके अनुयायियों की कर्मभूमि और जन्मभूमि रहा है। भारत की इस पवित्र भूमि पर ब्राह्मण या हिंदू धर्म, जैन धर्म और बौद्ध धर्म जैसे महान धर्मों का उदय हुआ। एक तरफ जहां हम देखते हैं कि इन सभी धर्मों और उनकी संस्कृतियों में आपस में विभिन्न प्रकार की भिन्नताएं थी किंतु इन सब ने अपने बीच सामंजस्य स्थापित कर लिया। और यह दर्शाता है कि विभिन्न धर्म होने के बावजूद भी प्राचीन काल से ही भारत में एकता का एक दीपक प्रज्वलित होता आ रहा हैं।
यू कहे तो भारत का भौगोलिक स्वरूप प्राचीन काल से ही सुपरिभाषित था किंतु यहां मौजूद अनेक छोटे-छोटे राज्यों और समुदायों ने धीरे-धीरे अपने समुदायों के लिए एक प्रादेशिक पहचान विकसित करने के कार्य प्रारंभ कर दिए और इसमें उन्हें सफलता भी मिली।
और इन्हीं प्रादेशिक पहचान वाली इकाइयों को आगे चलकर जनपद शब्द के रूप में संबोधित किया गया। किंतु समूचे प्रदेश का नाम बेहद ही शक्तिशाली और सांस्कृतिक तौर पर उस वक्त में बेहद ही आम शब्द आर्यों के कारण आर्यावर्त पड़ा। यदि हम इस आर्यावर्त की बात करें तो आर्यावर्त से अभिप्राय एक ऐसे क्षेत्र से था जो कि उत्तर और केंद्रीय भारत में विद्यमान था इसका फैलाव पूर्व से पश्चिमी समुद्र तट तक था। और यही क्षेत्र आगे भारतवर्ष के रूप में जाना गया।
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